श्रावण माह की पूर्णिमा का पर्व भारत के हर कोने में विशेष श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। वर्ष 2025 में यह तिथि और भी पवित्र एवं ऐतिहासिक महत्व रखती है, क्योंकि गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में इस दिन अनेक धार्मिक मेले, सांस्कृतिक आयोजन और लोक परंपराएँ आरंभ होने जा रही हैं। इनमें रफालेश्वर मेला, तरनेत्तर मेला और कई अन्य धार्मिक उत्सव शामिल हैं, जो पूरे सौराष्ट्र को भक्ति और उल्लास से भर देंगे।
श्रावण पूर्णिमा का महत्व
श्रावण पूर्णिमा न केवल चंद्रमा की पूर्णता का पर्व है, बल्कि यह भगवान शिव और विष्णु की आराधना से जुड़ा हुआ दिन है। इस दिन रक्षाबंधन, नारली पूर्णिमा, झूलन यत्रा, और उपाकर्म जैसे कई धार्मिक अनुष्ठान भी सम्पन्न होते हैं। गुजरात में विशेष रूप से यह दिन सौराष्ट्र की लोक संस्कृति और धार्मिक आस्था का संगम माना जाता है।
सौराष्ट्र: धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर की भूमि
गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र अपनी प्राचीन मंदिर संस्कृति, समुद्री तटों और लोक परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ आयोजित होने वाले मेले न केवल धार्मिक श्रद्धा का प्रतीक हैं, बल्कि वे लोककला, नृत्य, संगीत और सामाजिक मेलजोल के लिए भी जाने जाते हैं। श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर यह धरती भक्ति, लोकगीतों और सांस्कृतिक झलकियों से सराबोर हो जाती है।
रफालेश्वर मेला: समुद्र किनारे का आध्यात्मिक उत्सव
रफालेश्वर महादेव मंदिर, जो अरब सागर के तट पर स्थित है, श्रावण पूर्णिमा पर विशाल मेले का केंद्र बनता है।
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यहाँ हजारों की संख्या में श्रद्धालु महादेव का जलाभिषेक करने पहुँचते हैं।
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अरब सागर की लहरों के साथ गूँजते “हर-हर महादेव” के जयघोष का अद्भुत दृश्य भक्तों को अलौकिक आनंद प्रदान करता है।
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इस मेले में स्थानीय व्यापारी, हस्तशिल्पी और लोक कलाकार अपनी कला और संस्कृति को प्रस्तुत करते हैं।
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समुद्र तट पर लगने वाला यह मेला धार्मिक आस्था और प्राकृतिक सौंदर्य का अद्वितीय संगम है।
तरनेत्तर मेला: संस्कृति और लोककला का भव्य संगम
तरनेत्तर मेला सौराष्ट्र के प्रमुख लोक मेलों में से एक है, जो श्रावण पूर्णिमा से प्रारंभ होकर कई दिनों तक चलता है।
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इस मेले की पहचान लोकनृत्य, भजन-कीर्तन, और सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से है।
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गुजरात के ग्रामीण क्षेत्र से बड़ी संख्या में लोग पारंपरिक परिधान पहनकर यहाँ पहुँचते हैं।
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विशेष रूप से तरनेत्तर के गहनों और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी देशभर के पर्यटकों को आकर्षित करती है।
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रातभर चलने वाले गर्भा और रस नृत्य इस मेले की जान माने जाते हैं।
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यहाँ लोककथाओं और ऐतिहासिक प्रसंगों को गीत-संगीत के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है।
श्रावण पूर्णिमा और रक्षाबंधन का संगम
श्रावण पूर्णिमा का पर्व रक्षाबंधन के रूप में भी विशेष महत्व रखता है। गुजरात में बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। वहीं भाई बहनों की रक्षा का संकल्प लेते हैं। इस दिन का यह पारिवारिक और सामाजिक महत्व मेले के उल्लास में और वृद्धि कर देता है।
अन्य धार्मिक आयोजन और मेले
सौराष्ट्र में रफालेश्वर और तरनेत्तर के अतिरिक्त भी कई महत्वपूर्ण धार्मिक आयोजन होते हैं:
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सोमनाथ मंदिर में विशेष पूजन और रुद्राभिषेक।
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जसोरा और जुनागढ़ में स्थानीय लोकमेलों का आयोजन।
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समुद्री तटों पर होने वाली नारली पूर्णिमा की विशेष पूजा, जिसमें मछुआरे समुद्र देवता से प्रार्थना करते हैं।
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अनेक गाँवों और कस्बों में भजन-कीर्तन, सत्संग और लोकमंडल का आयोजन।
धार्मिक पर्यटन और श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या
श्रावण पूर्णिमा के अवसर पर सौराष्ट्र में देशभर से श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं।
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यहाँ आने वाले यात्रियों के लिए स्थानीय प्रशासन विशेष सुविधाएँ प्रदान करता है।
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मेले में पारंपरिक भोजन, लोक कला और हस्तशिल्प की झलक देखने को मिलती है।
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धार्मिक पर्यटन से यहाँ की आर्थिक और सामाजिक गतिविधियाँ भी बढ़ती हैं।
आस्था और आनंद का अद्भुत संगम
श्रावण पूर्णिमा 2025 पर सौराष्ट्र का यह भव्य आयोजन केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि लोकजीवन, संस्कृति और पर्यटन की दृष्टि से भी अमूल्य है। यह पर्व हमें भक्ति, भाईचारा और लोक परंपराओं से जोड़ता है। रफालेश्वर से लेकर तरनेत्तर तक, हर मेले में भक्ति का रस, लोककला की छटा और सामाजिक एकता का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
निष्कर्ष
श्रावण पूर्णिमा 2025 का यह पर्व सौराष्ट्र की भूमि को आस्था और उत्साह से आलोकित करेगा। रफालेश्वर मेला और तरनेत्तर मेला न केवल धार्मिक महत्व रखते हैं, बल्कि वे गुजरात की जीवंत संस्कृति और लोक धरोहर को भी जीवित रखते हैं। इस दिन पूरे क्षेत्र में भक्ति, आनंद और सामाजिक मेलजोल का वातावरण बनता है।
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