डोनाल्ड ट्रंप ने भारत को दी चेतावनी: अमेरिका की चिंता क्यों?
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, ने भारत पर निशाना साधते हुए कहा कि भारत रूस से बेहद सस्ता कच्चा तेल खरीद रहा है और उसे लाभ कमाकर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहा है। उन्होंने कहा कि यदि यह सिलसिला यूं ही चलता रहा, तो भारत पर और अधिक ट्रेड टैक्स या ट्रैफिक टैक्स लगाया जा सकता है।
ट्रंप का बयान:
“हमारे तथाकथित दोस्त रूस से तेल खरीद रहे हैं और अमरीका को नजरअंदाज कर रहे हैं। इसपर कार्रवाई होनी चाहिए।”
यह बयान ऐसे समय आया है जब अमेरिका रूस को वैश्विक स्तर पर अलग-थलग करने की कोशिश कर रहा है, लेकिन भारत जैसे देशों की रूस से व्यापारिक गतिविधियाँ उसकी नीति को कमजोर कर रही हैं।
भारत और रूस के बीच तेल व्यापार: क्या है सच्चाई?
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों ने रूस पर कई आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं, खासकर तेल और गैस सेक्टर में। लेकिन भारत ने अपने ऊर्जा हितों को देखते हुए रूस से तेल खरीदना जारी रखा है।
भारत को क्या लाभ मिल रहा है?
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रूस भारत को सस्ते दरों पर कच्चा तेल बेचता है — अंतरराष्ट्रीय बाजार से 20-30% तक सस्ता।
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भारत इस तेल को रिफाइन करके घरेलू उपयोग के साथ-साथ दूसरे देशों को भी निर्यात करता है।
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इससे रुपये में व्यापार बढ़ता है, डॉलर पर निर्भरता कम होती है।
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भारत की ईंधन महंगाई पर भी नियंत्रण बना रहता है।
वर्ष 2023 में भारत ने रूस से रिकॉर्ड स्तर पर कच्चा तेल खरीदा — करीब 1.6 मिलियन बैरल प्रतिदिन।
अमेरिका की रणनीति और ट्रंप की राजनीति
डोनाल्ड ट्रंप की बयानबाज़ी को केवल विदेश नीति नहीं बल्कि उनकी चुनावी रणनीति भी माना जा रहा है। ट्रंप “America First” नीति को लेकर लोकप्रिय रहे हैं और वे रूस के खिलाफ सख्त रवैया दिखाकर अपने रूढ़िवादी समर्थकों को आकर्षित करना चाहते हैं।
ट्रंप की रणनीति:
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भारतीयों की भावनाएं भड़काकर घरेलू राजनीति में फायदा उठाना
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रूस को पूरी तरह अलग-थलग करना
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भारत को अमेरिकी लाइन पर लाना
लेकिन भारत जैसे स्वतंत्र और रणनीतिक रूप से सशक्त देश पर इस तरह का दबाव काम नहीं करता।
भारत की स्थिति: रूस से तेल खरीदना ज़रूरी या मजबूरी?
भारत की ऊर्जा जरूरतें बहुत बड़ी हैं — देश की 85% ऊर्जा ज़रूरतें आयातित कच्चे तेल से पूरी होती हैं।
भारत ने स्पष्ट किया है कि वह अपनी जनता के हितों को ध्यान में रखकर ही कोई निर्णय लेगा।
भारत का जवाब क्या हो सकता है?
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रूस से तेल खरीदना कोई राजनीतिक समर्थन नहीं है।
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यह सिर्फ वाणिज्यिक और रणनीतिक जरूरत है।
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भारत ने कभी किसी देश पर प्रतिबंध नहीं लगाए, और वह चाहता है कि बाकी देश भी स्वतंत्र फैसले लें।
भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने पहले ही कह चुके हैं —
“हम अपनी ऊर्जा सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं, और हम वहां से तेल खरीदते हैं जहां यह सस्ता मिलता है।”
आंकड़ों से समझिए भारत की मजबूरी
| वर्ष | रूस से भारत का कच्चा तेल आयात (बैरेल/दिन) | वैश्विक तेल कीमत में अंतर (%) |
|---|---|---|
| 2021 | 0.2 मिलियन | 5% |
| 2023 | 1.6 मिलियन | 25–30% |
इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत ने रूस से तेल आयात में ज़बरदस्त बढ़ोतरी की है, जिससे उसे आर्थिक लाभ हुआ है और वैश्विक मुद्रास्फीति में भी सहयोग मिला है।
ट्रंप की चेतावनी का संभावित असर
संभावित परिणाम:
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अमेरिका से आयात महंगा हो सकता है – टेक्नोलॉजी, दवा, रक्षा उत्पाद।
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विदेशी निवेश प्रभावित हो सकता है – अमेरिकी कंपनियाँ भारत में निवेश को लेकर संकोच करें।
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डॉलर की स्थिरता पर असर – भारत को अधिक डॉलर खर्च करने पड़ सकते हैं।
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रणनीतिक साझेदारी में खटास – QUAD जैसी समूहों में भरोसे की कमी।
लेकिन भारत के पास विकल्प भी हैं
भारत अब सिर्फ एक उभरती अर्थव्यवस्था नहीं, बल्कि एक रणनीतिक शक्ति है। अमेरिका भारत पर दबाव बना सकता है, लेकिन भारत के पास विकल्प हैं:
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रूस, ईरान, सऊदी अरब जैसे देशों से व्यापार
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BRICS और SCO जैसे मंचों पर बढ़ी भागीदारी
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आत्मनिर्भर भारत अभियान के तहत तेल भंडारण, रिफाइनिंग और विकल्पों का विकास
एक्सपर्ट क्या कहते हैं?
विदेश नीति विशेषज्ञ चेतन शर्मा कहते हैं:
“ट्रंप का बयान मुख्यतः चुनावी स्टंट है। भारत को ऐसे बयानों से घबराने की ज़रूरत नहीं है। हमें राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखना चाहिए।”
अंतरराष्ट्रीय रणनीति विशेषज्ञ एलिज़ा घोष कहती हैं:
“भारत को कूटनीतिक रूप से अमेरिका से संवाद बनाए रखते हुए रूस से अपने संबंधों को बनाए रखना चाहिए।”
भारत-अमेरिका संबंधों का भविष्य
भारत और अमेरिका के रिश्ते केवल तेल पर नहीं टिके हैं। दोनों देश:
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रक्षा सहयोग
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तकनीकी साझेदारी
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आपसी व्यापार
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शिक्षा और स्वास्थ्य
में गहराई से जुड़े हुए हैं। ऐसे में ट्रंप के बयानों का असर सीमित ही रहने की संभावना है।
भारत का विदेश मंत्रालय – आधिकारिक बयान: https://mea.gov.in
निष्कर्ष: क्या भारत को डरने की ज़रूरत है?
बिलकुल नहीं।
भारत एक स्वतंत्र और संप्रभु राष्ट्र है जो अपने फैसले खुद लेता है। ट्रंप जैसे नेताओं के बयानों को गंभीरता से लेना ठीक है, लेकिन उससे डरकर नीति बदलना राष्ट्रीय हितों के खिलाफ होगा।
आने वाले समय में भारत को एक संतुलित कूटनीति अपनाते हुए, दोनों महाशक्तियों के बीच संतुलन बनाकर चलना होगा।
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